हरियाणा में मुख्य रूप से 8 नदियां हैं इनमें यमुना नदी, घग्गर नदी, टांगरी नदी, मारकंडा नदी, सरस्वती नदी, साहिबी नदी, दोहान नदी, कृष्णावती नदी शामिल है। यमुना नदी राज्य की पूर्वी सीमा पर अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, सोनीपत व फरीदाबाद जिलों से लगकर बहती है और हरियाणा को उत्तर प्रदेश से अलग करती है । इसके विपरीत घग्गर , साहिबी दोहान, कृष्णावती नदी सभी बरसाती नदियां हैं।
यमुना - यह सदा प्रवाहित होने वाली नदी है जो टेहरी उत्तर प्रदेश के पास यमुनोत्री से निकलती है। यह राज्य में अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत, सोनीपत और फरीदाबाद जिलों में से होती हुई लगभग 320 किलोमीटर की यात्रा पूरी करती हैं तथा हसनपुर के पास उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है ।
यमुना - यह सदा प्रवाहित होने वाली नदी है जो टेहरी उत्तर प्रदेश के पास यमुनोत्री से निकलती है। यह राज्य में अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत, सोनीपत और फरीदाबाद जिलों में से होती हुई लगभग 320 किलोमीटर की यात्रा पूरी करती हैं तथा हसनपुर के पास उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है ।
सरस्वती नदी - यह देवनदी प्राचीन काल में तो सदानीरा थी परंतु वर्तमान में बरसाती नदी बन कर रह गई है। बरसात के मौसम में यह हिमाचल प्रदेश के सिरमोर की पहाड़ियों से निकलती है जो लोर स्थान तक पहुंचते अति क्षीण हो जाती है परंतु भवानीपुर के पास पानी की आव बढ़ने से पहले जैसा रूप प्राप्त कर लेती है यह पुन: बाल छप्पर तक आते-आते क्षीण हो जाती है परंतु बड़ा खेड़ा के पास पानी की आव बढ़ने से इसकी स्थिति में पुन: सुधारा आ जाता है। पेहवा के पास इसमें मारकंडे नदी के मिल जाने से आधुनिक सरस्वती का स्वरूप प्रदान होता है । जो आगे जाकर घग्गर नदी में मिल जाती है । सिरसा से आगे भटनेर के पास मरुस्थल में लुप्त हो जाती है।
दृषद वती नदी - यह भी सरस्वती की तरह राज्य की प्रसिद्ध नदी है जो प्राचीन काल में सदानीरा थी परंतु वर्तमान में सामान्य बरसाती नदी बन कर रह गई है। यह प्राचीन काल में कुरुक्षेत्र की दक्षिणी सीमा बनाती हुई समुद्र में मिलती थी । इतिहासकारों के अनुसार यह आधुनिक राका नदी है और पश्चिमी यमुना नहर की हांसी हिसार वाली शाखा इसका प्रतिनिधित्व करती है।
आपगा नदी - सरस्वती ओर दृषद वती की तरह यह भी प्राचीन काल की प्रसिद्ध नदी है जो वर्तमान में बरसाती नाला बन कर रह गई है इसको निचली खांड के नाम से पुकारा जाता है इसकी प्रमुख शाखा हिरण्यवती, तैतरनी, और मंदाकिनी है।
मारकंडा नदी - इसका उद्गम स्थान नाहन के पास शिवालिक की पहाड़ियां है इसमें सदादानी और बैगवा नामक दो नाले आकर मिलते हैं जिससे इसकी स्थिति में सुधार हो जाता है तथा शाहबाद के पास पहुंचते-पहुंचते इसकी प्रकृति काफी उग्र हो जाती है जो आगे चल कर दो भागों में बांट जाती है ।
तागड़ी नदी - यह नदी मारकंडा की सहायक नदी है जो कि मोरनी की पहाड़ियों से निकलती है । अंबाला जिला में जिले में बहती हुई यह उमला नाले को साथ लेकर अंतत: मारकंडा में मिल जाती है। इस प्रकार मारकंडा सरस्वती नदी में मिलकर अंत में राजस्थान के मरुस्थल में लुप्त हो जाती है।
घग्गर - इसका उद्गम शिमला के पास डागशाई से होता है। यह नदी सिरमोर की पहाड़ियों से हरियाणा में प्रवेश करती है पंजाब और हरियाणा की काफी दूरी तक हदबंदी करती है कुरुक्षेत्र अंबाला के कई नालों को साथ लेकर अंत में राजस्थान के मरुस्थल में मिल जाती है।
साहबी नदी - दक्षिणी भाग में साहबी, कंसावती, दोहन नदियाँ हैं। इनमे साहबी सबसे प्रसिद्ध है यह नदी जयपुर से उत्तर में 30 मील दूर मनोहरपुर और जीतगढ़ के समीप से निकलती है यह नदी नीमराणा एवं शाहजहौजपुर के पास से निकल कर यह कोटकासिम आती है और रेवाड़ी जिले में प्रवेश करती है । खलीलपुर एवं पटौदी के बीच से बहती हुई लाहोरी गांव के निकट झज्जर जिले में प्रवेश करती है और फिर खेड़ी सुल्तान होते हुए गुड़गांव जिले में प्रवेश करती है यहां यह काफी दूरी बहकर कुतानी गांव के पास से होकर रोहतक जिले में चली जाती है फिर अंत में यह यमुना नदी में मिल जाती है।
कंसावती - यह नदी भी साहिबी नदी के उद्गम स्थान के निचले भाग से निकलकर नारनोल के पूर्व में बहती हुई कोसली गांव के पास से निकलकर झज्जर में प्रवेश करती है। सुरेती गांव के पास यह दो भागों में बांट जाती है एक भाग झज्जर के दक्षिण में फैल कर समाप्त हो जाता है परंतु दूसरा भाग छुछकवास होता हुआ बदरोह नाले में मिल जाता है। इसका पुराना नाम कृष्णवती था।
इंदौरी - यह नदी मेवात की पुरानी नगरी इंदौर के नाले से मिलकर बनती है अलवर जिले में कुछ दूर रहने के बाद यह नदी दो भागों में बैठ जाती है एक भाग रेवाड़ी तहसील में प्रवेश करता है जबकि दूसरा भाग तावडू के पास से होता हुआ बोहडा के पास बहकर पटौदी की साहबी नदी में प्रवेश करता है संभवत इस का पुराना नाम अंशुमति था।
दुहान - यह एक प्राचीन नदी है ऐसा मत है कि यह भृंगु ऋषि की पत्नी दिव्य पौलीमा के नेत्ररज से बनी थी यह ऋषि पत्नी महर्षि की मां भी थी। ऋषि इस नदी के तट पर रहते थे इसी कारण अब भी ढाँसी जहां से होकर यह नदी बहती है। एक तीर्थ स्थान माना जाता है इसका संबंध भृंगु और च्यवन ऋषियों से जुड़ा है। अब यह नदी बरसाती नदी बन कर रह गई है और महेंद्रगढ़ के पास से रेवाड़ी जिले में समाप्त हो जाती है।