लाल किले में इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1973 को टाइम कैप्सूल 32 फीट नीचे दबाया था. दावा किया जाता है कि इस टाइम कैप्सूल में आजादी के बाद 25 वर्षों का घटनाक्रम साक्ष्य के साथ मौजूद था. इंदिरा गांधी ने इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च को अतीत की अहम घटनाएं दर्ज करने का काम सौंपा था. हालांकि, तब सरकार के इस फैसले पर काफी विवाद भी हुआ था.
विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपना और अपने परिवार का महिमामंडन किया है. साल 1970 में मोरारजी देसाई ने कहा था कि वो कालपत्र को निकालकर देखेंगे कि कालपत्र में क्या लिखा है. मोरारजी देसाई की सरकार बनने के बाद 8 दिसम्बर 1977 को कालपत्र निकाला भी गया, लेकिन यह पता नहीं चल सका कि उसमें लिखा क्या था. इंदिरा गांधी के कालपत्र का रहस्य आज भी रहस्य ही बना हुआ है कि उन्होंने इस टाइम कैप्सूल में क्या लिखवाया था।
साथ ही, कैप्सूल की सामग्री पर संसद में व्यापक बहस हुई। इन बहसों के मुताबिक इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग की गई थी। हालाँकि, आज तक, इन दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किया गया है। इसके अलावा, इसके उत्खनन के बाद कैप्सूल के ठिकाने के बारे में अधिक जानकारी नहीं है।
2012 की एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार , शिक्षाविद् और लेखिका मधु पूर्णिमा किश्वर ने आरटीआई आवेदन के माध्यम से पीएमओ से टाइम कैप्सूल के बारे में जानकारी मांगी थी। हालांकि, पीएमओ ने अपने जवाब में दावा किया कि उसके पास टाइम कैप्सूल का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
इसके बाद किश्वर ने केंद्रीय सूचना आयोग से संपर्क किया, जिस पर आयुक्त ने 'पीएमओ को इस विषय पर किसी भी उपलब्ध रिकॉर्ड के लिए नए सिरे से खोज करने का निर्देश दिया और यदि आवश्यक हो, तो वे इस मामले को राष्ट्रीय अभिलेखागार और एएसआई के साथ उठा सकते हैं ताकि पता चल सके कि क्या उनके पास ऐसा कोई रिकॉर्ड।'
*💎टाइम कैप्सूल दबाने का क्या होता है उद्देश्य👉🏻*
टाइम कैप्सूल को जमीन के नीचे रखने का एकमात्र उद्देश्य ये होता है कि भविष्य की पीढ़ियों को गुजरे हुए कल के बारे में बताया जा सके. लाल किले के नीचे ही नहीं, देश में कई और स्थान भी हैं, जहां टाइम कैप्सूल दबाया गया है. आईआईटी कानपुर ने अपने 50 साल के इतिहास को संजोकर रखने के लिए टाइम कैप्सूल को जमीन के नीचे दबाया था.
टाइम कैप्सूल को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने साल 2010 में जमीन के अंदर डाला था. इस टाइम कैप्सूल में आईआईटी कानपुर के रिसर्च और शिक्षकों से जुड़ी जानकारियां थीं. इसका उद्देश्य यही था कि दुनिया तबाह हो जाए तब भी आईआईटी कानपुर का इतिहास सुरक्षित रहे. आईआईटी कानपुर के अलावा चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में भी टाइम कैप्सूल दबाया गया है. इसमें कृषि विश्वविद्यालय के इतिहास से जुड़ी जानकारियां सहेजी गईं थीं.
*💎सदियों पुराना है टाइम कैप्सूल का इतिहास👉🏻*
टाइम कैप्सूल का अतीत सैकड़ों साल पुराना है. इसका कॉन्सेप्ट केवल भारत में ही नहीं है. स्पेन में 30 नवंबर, साल 2017 को बर्गोस में करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल मिला था. ये टाइम कैप्सूल ईसा मसीह की मूर्ति के रूप में था. मूर्ति के अंदर एक दस्तावेज था, जिसमें साल 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सूचनाएं दर्ज थीं.
फिलहाल इसे ही सबसे पुराना टाइम कैप्सूल माना जाता है. बीसवीं सदी में अमेरिका के कई शोध संस्थानों ने टाइम कैप्सूल के जरिए जानकारियां जमीन के नीचे दबाई थीं. पूर्वी सोवियत संघ में भी एक दौर में कई टाइम कैप्सूल जमीन के नीचे दबाए गए थे, जिनमें भविष्य के लिए कई तरह के संदेश दिए गए थे. टाइम कैप्सूल के लिए 1990 में एक अंतरराष्ट्रीय संस्था भी बनाई गई थी, जो दुनिया भर में सारे टाइम कैप्सूल्स का रिकॉर्ड रखती है.
*💎खराब नहीं होता टाइम कैप्सूल👉🏻*
टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है. इसे ऐसी विशेष सामग्री से बनाया जाता है, जिसमें किसी भी परिस्थिति में किसी भी तरह केमिकल रिएक्शन नहीं होता. जमीन के अंदर गहराई में दबाया जाने वाला टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम और हर तरह की परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होता है. यह कभी न तो सड़ता-गलता है, ना ही खराब ही होता है.