आर्यभट्ट का जनम वि. स. ५३३ अर्थार्त सं ४७६ में हुआ था | यह समय भारत का सुवर्णयुग था | मगध शासक गुप्त साम्राज्य के निर्देशन में समग्र भारत बहुमुखी प्रगति में विश्व में सबसे अग्र स्थान पर था |
आर्यभट्ट का जन्म स्थान पटना अर्थात प्राचीन कालीन मगध की राजधानी पाटलिपुत्र के समीप कुसुमपुर नमक ग्राम था | आर्यभट्ट सुप्रसिद्ध गणितज्ञ तथा प्रखर ज्योतिषी थे | खगोल विज्ञानं पर भी आपका प्रभुत्व था |
आर्यभट्ट के सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ का नाम आर्यभट्टीय है | इस ग्रन्थ की स्थापना आर्यभट्ट ने वि. स. ५५६ सं ४९९ में की | यह ग्रन्थ छंदोबद्ध है और चार विभागों में विभक्त है |यह ग्रन्थ सूत्रशैली में है | किसी सिद्धांत को अत्यंत संक्षेप में प्रतिपादन करना सूत्रशैली कहलाती है | ऐसे हम गागर में सागर की उपमा डेट है | आर्यभट्टीय के चतुर्थ विभाग का नाम गोलपाद है | उसमे केवल ११ ही श्लोक हैं | किन्तु उन ११ श्लोकों में सम्पूर्ण सूर्य सिद्धांत को प्रतिपादित किया गया है |
आर्यभट्ट त्रिकोणमिति के भी आविष्कर्ता थे | उन्होंने त्रिकोणमिति के अनेक सूत्रों का संशोधन किया है | उनके ग्रन्थ आर्यभट्टीय में प्रथम बार त्रिकोणमिति का उल्लेख मिलता है | आर्यभट्ट प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने गणित में पाई का प्रयोग किया | उन्होंने ही सर्वप्रथम सारणियों का प्रयोग किया | उनके द्वारा प्रतिपादित सूत्र और नियम वर्तमान में गणित के पाठ्यक्रम में पढ़े जाते है |
आर्यभट्ट ने ही प्रथम बार दिखाया की पृथिवी का आकर गोल है और वह अपने धुरी पर चक्कर लगाती है | उन्होंने नक्षत्रों के परिभ्रमण का भी विवेचनं किया ही | उन्होंने सूर्य सिद्धांत नमक ग्रन्थ में ग्रहण के कारणों का सूक्ष्म विवेचन करते हुए ऐसा स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है की सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण राहु और केतु नमक राक्षसों द्वारा ग्रसित होने से नहीं अपितु चन्द्रमा अथवा पृथ्वी की छाया का परिणाम है |
उन्होंने जो वर्तमान निश्चित किया है वह यूनानी ज्योतिषी टॉलमी द्वारा निश्चित किये हुए कल की अपेक्षा अधिक स्पष्ट है|आर्यभट्ट की गिनती अनुसार वर्ष में 365. 2586805 दिवस होते हैं | इससे स्पष्ट होता है की अन्य देशों के ज्योतिषियों की अपेक्षा आर्यभट्ट की गिनती ाआधुनिक कालगणना के साथ सर्वाधिक साम्य रखती है |
आर्यभट्ट का जन्म स्थान पटना अर्थात प्राचीन कालीन मगध की राजधानी पाटलिपुत्र के समीप कुसुमपुर नमक ग्राम था | आर्यभट्ट सुप्रसिद्ध गणितज्ञ तथा प्रखर ज्योतिषी थे | खगोल विज्ञानं पर भी आपका प्रभुत्व था |
आर्यभट्ट के सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ का नाम आर्यभट्टीय है | इस ग्रन्थ की स्थापना आर्यभट्ट ने वि. स. ५५६ सं ४९९ में की | यह ग्रन्थ छंदोबद्ध है और चार विभागों में विभक्त है |यह ग्रन्थ सूत्रशैली में है | किसी सिद्धांत को अत्यंत संक्षेप में प्रतिपादन करना सूत्रशैली कहलाती है | ऐसे हम गागर में सागर की उपमा डेट है | आर्यभट्टीय के चतुर्थ विभाग का नाम गोलपाद है | उसमे केवल ११ ही श्लोक हैं | किन्तु उन ११ श्लोकों में सम्पूर्ण सूर्य सिद्धांत को प्रतिपादित किया गया है |
आर्यभट्ट त्रिकोणमिति के भी आविष्कर्ता थे | उन्होंने त्रिकोणमिति के अनेक सूत्रों का संशोधन किया है | उनके ग्रन्थ आर्यभट्टीय में प्रथम बार त्रिकोणमिति का उल्लेख मिलता है | आर्यभट्ट प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने गणित में पाई का प्रयोग किया | उन्होंने ही सर्वप्रथम सारणियों का प्रयोग किया | उनके द्वारा प्रतिपादित सूत्र और नियम वर्तमान में गणित के पाठ्यक्रम में पढ़े जाते है |
आर्यभट्ट ने ही प्रथम बार दिखाया की पृथिवी का आकर गोल है और वह अपने धुरी पर चक्कर लगाती है | उन्होंने नक्षत्रों के परिभ्रमण का भी विवेचनं किया ही | उन्होंने सूर्य सिद्धांत नमक ग्रन्थ में ग्रहण के कारणों का सूक्ष्म विवेचन करते हुए ऐसा स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है की सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण राहु और केतु नमक राक्षसों द्वारा ग्रसित होने से नहीं अपितु चन्द्रमा अथवा पृथ्वी की छाया का परिणाम है |
उन्होंने जो वर्तमान निश्चित किया है वह यूनानी ज्योतिषी टॉलमी द्वारा निश्चित किये हुए कल की अपेक्षा अधिक स्पष्ट है|आर्यभट्ट की गिनती अनुसार वर्ष में 365. 2586805 दिवस होते हैं | इससे स्पष्ट होता है की अन्य देशों के ज्योतिषियों की अपेक्षा आर्यभट्ट की गिनती ाआधुनिक कालगणना के साथ सर्वाधिक साम्य रखती है |