पुराना नाम - कान्होंड महेंद्रगढ़ स्थापना - 1 नवंबर 1966
महेन्द्रगढ़ हरियाणा का एकमात्र ऐसा जिला है जिसका मुख्यालय महेंद्रगढ़ में न होकर नारनौल में है। इसकी सीमा राजस्थान के 4 जिलों से लगती है। - अलवर, चूरू, जयपुर और झुंझुनू
* जनसंख्या - 922088
* लिंगानुपात - 894/1000
* साक्षरता दर - 78.9%
* मुख्यालय - नारनौल।
* उप-मंडल - महेंद्रगढ़, कनीना व नारनौल।
* तहसील - महेंद्रगढ़, नारनौल, अटेली, कनीना,
नांगल चौधरी।* उप-तहसील - सतनाली
* महेंद्रगढ़ के प्रमुख खनिज - स्लेट, लौह-अयस्क, एस्बेस्टस, संगमरमर और चूना।
* खंड - अटेली, नांगल चौधरी, कनीना, महेंद्रगढ़, नारनौल, निजामपुर, सतनाली।
* प्रमुख नगर - नारनौल, कनीना, अटेली, नांगल चौधरी
* महेंद्रगढ़ की स्थापना के समय इसका क्षेत्रफल 3474 वर्ग किलोमीटर था लेकिन वर्तमान में
इसका क्षेत्रफल 1899 वर्ग किलोमीटर है।
महत्वपूर्ण तथ्य
>1858 में महेंद्रगढ़ पर पटियाला के शासकों का शासन हो गया था। पटियाला रियासत के राजा नरेंद्र सिंह ने अपने पुत्र महेंद्र के सम्मान में इसका नाम महेंद्रगढ़ रखा।
> महेंद्रगढ़ का पुराना नाम का कान्होड है जो थानोडिया ब्राह्मणों के द्वारा आबाद कीए जाने की वजह से पडा।
> बाबर के समय में इसको मलिक महमूद खा ने बसाया था।
> महेंद्रगढ़ को खनिजों का शहर भी कहा जाता है क्योंकि हरियाणा मे सबसे ज्यादा खनिज पदार्थ महेंद्रगढ़ जिले में ही मिलते हैं।
> महेंद्रगढ़ और इसके आसपास के गांव का आरंभ अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान के दादा आनंगपाल के काल में हुआ था।
> महेंद्रगढ़ पर्यटन के मामले में हरियाणा में दूसरे नंबर पर है।
> हरियाणा में सबसे अधिक सरसों का उत्पादन महेंद्रगढ़ में ही होता है लेकिन फल व सब्जियां यहां पर सब से कम होती हैं।
> हरियाणा में हवाई चप्पल का उत्पादन यहीं पर होता है।
> महेंद्रगढ़ के किले को तात्या टोपे ने बनवाया था। तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग है।
>महेंद्रगढ़ हरियाणा का एकमात्र ऐसा जिला है जो संपूर्ण बीमा से कवर है।
> महेंद्रगढ़ में हरियाणा का एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थित है। जो पाली गांव में स्थित है। इसकी स्थापना 2009 में की गई थी। इसके चांसलर महेंद्र पाल सिंह और वाइस चांसलर आर.सी कुहाड बनाए गए हैं।
> NH - 11 (पटोदी से रेवाड़ी-नारनौल होते हुए झुंझुनू तक)
> NH - 148B (नांगल चौधरी से जाखल जीदं तक)
नारनौल क्षेत्
नारनौल को शेरशाह की जन्मभूमि के नाम से भी संबोधित किया जाता है। अकबर ने ही यहां पर सिक्के ढालने की टेक्सटाइल की स्थापना की थी। बीरबल के छते नाम से मशहूर राय बालमुकुंद दास का छता यहां के मुगलकालीन इतिहास की झलक देता है। नारनौल को पहले नंदीग्राम के नाम से भी जाना जाता था।
> नारनौल में एक वीर्य बैंक स्थापित किया गया है जहां तरल नाइट्रोजन प्लांट लगा हुआ है। >नारनोल को तालाबों और बावड़ियों का शहर भी कहा जाता है। क्योंकि यहां पर पिंजौर में लगभग ____ 360 बाडियां हैं।
> महेंद्रगढ़, नारनौल, भिवानी, सिरसा व हिसार आदि रेतीले भाग के अंतर्गत आते हैं जहां पर सबसे कम वर्षा होती है। इसलिए यहां नलकूपों की सहायता से फव्वारे लगा कर सिंचाई की जाती है।
>शेरशाह सूरी का बचपन महेंद्रगढ़ के नारनौल में बिता था।
> 1543 में नारनौल में वीरभान ने सतनामी संप्रदाय की स्थापना की थी।
» वीरभान का गुरु - उदय दास था।
» 1672 में नारनौल में औरंगजेब के विरुद्ध सतनामीओं के द्वारा विद्रोह किया गया था।
> नारनौल को विरासत का शहर भी कहा जाता है।
> नारनोल के पास पटीकरा में श्री कृष्ण आयुर्वैदिक मेडिकल कॉलेज प्रस्तावित है।
> भारत का सबसे बड़ा लॉजिस्टिक पार्क नारनौल में स्थित है।
• नारनौल के प्रमुख खनिज - तांबा, अभ्रक, व बैराइट
• एस्बेस्टस - यह एक ऐसा पदार्थ है जो आग में नहीं जलता है।
• क्वार्ट्स - अटेली व टहला
* जवाहरलाल नेहरू उत्थान सिंचाई परियोजना - इस परियोजना का निर्माण महेंद्रगढ़ जिले में कृषि विकास तथा सूखा राहत कार्यक्रम के अंतर्गत किया गया। इस प्रणाली के द्वारा सन 1976 में पहली बार पानी छोड़ा गया था तथा वर्ष 1987 में पड़े भयंकर सूखे के दौरान खरीफ फसल को बचाया गया।
>महेंद्रगढ़ नहर प्रणाली की क्षमता 1700 क्यूसेक पानी ग्रहण करने की है। इसको भाखड़ा नहर से पानी मिलता है।
* महत्वपूर्ण स्थल
>ढोसी की पहाड़ियां - हरियाणा में अरावली मैदान का सबसे ऊंचा भाग नारनौल नगर के दक्षिण
पश्चिम में कुल्ताजपुर ग्राम में 652 मीटर ऊंचा है और यही ढोसी की पहाड़ियां कहलाती हैं।
> माधवगढ़ का किला - इसका निर्माण राजस्थान के माधोपुर के शासक सवाई माधव सिंह ने करवाया था।
> ढोसी तीर्थ - यह नारनौल में चवन ऋषि की तपोस्थली है। इन्होंने ही सबसे पहले चवनप्राश का निर्माण किया था। ढोसी में दोज का सबसे बड़ा मेला सोमवार की अमावस्या को लगता है।
मता राव बालामुकन्द दात
> बीरबल का छत्ता - ईसको राय मुकुंद का छत्ता भी कहा जाता है। यह 5 मंजिला इमारत है। इसका निर्माण नारनौल के दीवान राय-ए-राईन ने शाहजहां के काल में करवाया था। प्राचीन काल में यहां बीरबल का आना जाना था इसलिए इसे बीरबल
का छत्ता भी कहा जाने लगा। इसमें एक सुरंग भी बनी हुई है और ऐसा माना जाता है कि यह सुरंग दिल्ली, जयपुर, महेंद्रगढ़ व ढोसी से जुड़ी हुई है।
> जल महल - इसका निर्माण नारनौल के जागीरदार शाह कुली खान ने 1591 में करवाया था। यह एक विशाल तालाब के मध्य स्थित है। इसकी स्थापत्य कला अकबरी स्टाइल हिंदू-मुस्लिम है।
> चोर गुंबद - इसका निर्माण जमाल खान ने करवाया था। इसे नारनोल का साइन बोर्ड भी कहा जाता है। इस गुंबद के अर्कों का निर्माण अंग्रेजी के अक्षर S के समान किया गया। प्राचीन समय में यह चोर डाकूओं के छिपने की जगह बन गई थी इसलिए इसका नाम चोर गुंबद पड़ गया।
> शाह कुली खां का मकबरा - इसका निर्माण 1578 में स्लेटि व लाल रंग के पथरों का प्रयोग करके किया गया है और निर्माण कला में पठान शैली का प्रयोग किया गया है। इस मकबरे में त्रीपोलियन
द्वार का निर्माण 1589 में किया गया। शाह कुली खा ने यहां पर एक आराम-ए-कौसर बाग का निर्माण करवाया था।
> शाह विलायत का मकबरा - शाह विलायत का मकबरा इब्राहिम खान के मकबरे के एक और स्थित है। यह मकबरा आकार में बड़ा है और इसे तुगलक से लेकर ब्रिटिश काल तक की परंपरागत वास्तुकला से सजाया गया है। फिरोजशाह
तुगलक के काल में यह मकबरा और इसके निकट के स्थल बनाए गए थे।
> इब्राहिम खान सूरी का मकबरा - नारनौल शहर के दक्षिण में घनी आबादी के बीच स्थित इब्राहिम खान का मकबरा एक विशाल गुंबद के आकार का है। इस मकबरे का निर्माण शेरशाह सूरी ने 1538-46 ईस्वी में अपने दादा इब्राहिम सूरी की याद में करवाया था।
मिर्जा अलीजान की बावड़ी - मिर्जा अलीजान की बावड़ी नारनौल शहर के पश्चिम में आबादी से बाहर स्थित है। इस ऐतिहासिक बावड़ी का निर्माण मिर्जा अली खान ने करवाया था।
> नारनौल की बावड़ी - किसी समय नारनौल में 14 बावड़ीयाँ मौजूद थी, लेकिन इन बावड़ियों की संख्या
लगातार घटती ही जा रही है। नारनौल की मुख्य बावड़ी तख्तवाली बावड़ी है, जो सौंदर्य से परिपूर्ण है। यह बावड़ी छलक नदी के किनारे स्थित है। अपने ऊपर शानदार तख्त शीश धारण किए हुए यह बावड़ी मिर्जा अली जान ने बनवाई थी।
> हमजा पीर दरगाह - नारनौल से करीब 10 किलोमीटर दूर ग्राम धरतूं में स्थित संत हमजा पीर की दरगाह भी काफी प्रसिद्ध है। हमजा पीर का पूरा नाम हजरतसाह कलमुद्दीन हमजा पीर हुसैन था।
>इनके अलावा हमजा पीर दरगाह, शाह विलायत का मकबरा, शाह कुली खां का मकबरा, मिर्जा अली
खान, शाह निजाम का मकबरा, शोभा सरोवर, पीर तुर्कमान का मकबरा भी यहां पर स्थापित है।
उद्दालक ऋषि का आश्रम स्याणा गांव में स्थित है। ।
कानोड़ का किला
* प्रमुख धाम
> चामुंडा देवी मंदिर - इसकी स्थापना राजा नूर करण के द्वारा की गई थी। नारनौल के मध्य भाग में स्थापित यह प्राचीन मंदिर शहर के मुख्य दर्शनीय स्थलों में से एक है, साथ ही यह सभी धर्मों एवम् संप्रदायों की एकता का भी प्रतीक है।
>Baघोत तीर्थ स्थल - यह तीर्थ स्थल कनीना के समीप गांव बाघोत में स्थित है। जो कि पिप्पलाद ऋषि का आश्रम स्थल है। इक्ष्वाकु वंश के राजा दिलीप सिंह ने इस शिव मंदिर का निर्माण करवाया था और इसे बागेश्वर का नाम दिया गया था। कालांतर में बागेश्वर से यह भागोत हो गया। यहां पर कावड़ के समय श्रद्धालु की अपार भीड़ लगती है।
> बाबा केसरिया धाम, मांडोला
> बाबा खिमज धाम, सेहलंग
> बाबा भोलेगिरी आश्रम, खेड़ी तलवाड़ा
>अन्नपूर्णा तीर्थ । दश मेक्ष गुरुद्वारा
* नसीबपुर - यहां पर ब्रिटिश शासकों ने स्वतंत्रता सेनानियों का कत्ल किया था। क्योंकि इस युद्ध में
राव तुलाराम हार गए थे। राव तुलाराम का वास्तविक नाम तुल सिंह था और इनके सेनापति का नाम किशन गोपाल देव था। यहां पर 1857 ईसवी के क्रांतिकारियों का शहीद स्मारक भी बनाया गया है।
* दोहन नदी - यह एक मौसम नदी है। जो साहिब नदी के साथ मिल कर बहती है। यह ढोसी से निकलती है। यह महेंद्रगढ़ की एक महत्वपूर्ण नदी है। फिलहाल यह सूखी हुई है।
* महेंद्रगढ़ के प्रमुख व्यक्ति
> रामविलास शर्मा - इनका जन्म सन 1949 ईस्वी में हुआ था।
> बाबा रामदेव - इनका वास्तविक नाम रामकिशन यादव है। इनका जन्म 25 दिसंबर 1965 को महेंद्रगढ़ के अली सैयदपुर में हुआ था। ये हरियाणा तथा आयुर्वेद के ब्रांड एंबेसडर हैं। वर्ष 2006 में दयानंद गांव में इन्होने पतंजलि योग ट्रस्ट की स्थापना की। इनके आरंभिक गुरु प्रद्युमन खानपुर, सोनीपत से रहे हैं। इनके बाद में बाबा रामदेव के गुरु बलदेव आचार्य बने जो रोहतक से संबंधित हैं।
> सतीश कौशिक - एक फिल्म स्टार है।
> संदीप कुमार एक खिलाड़ी है।
- हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा नांगल चौधरी से संबंधित हैं।
> यहां के सांसद धर्मवीर सिंह जी हैं।
> यहां के विधानसभा क्षेत्र महेंद्रगढ़, अटेली, नारनौल व नांगल चौधरी हैं।
अटेली
» नारनोल से लगभग 20 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में स्थित रेवाड़ी नारनौल रेल मार्ग पर स्थित अटेली
महेंद्रगढ़ जिले की प्रमुख मंडी है। यह स्थान अनाज की मंडी व स्लेट पत्थर की पहाडीयों के कारण
काफी विख्यात है।
> स्लेट पत्थर की प्रचुर मात्रा के कारण यहां स्लेट उद्योग काफी ज्यादा प्रसिद्ध है जो की देश-विदेश में स्लेट कि पुर्ती करता है।
कनीना
> महेंद्रगढ़ से लगभग 15 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित कनीना एक ऐतिहासिक गांव है जिसे 13 वीं
सदी में अजमेर क्षेत्र से आए कन्हैया लाल अहीर कान्हाराम उर्फ काना सिंह ने बसाया था और उसी
के गोत्र के नाम पर इस गांव का नाम कनीना पड़ गया।
» इस गांव के सरदार जोध सिंह लगभग 40 गांव के चौधरी हुआ करते थे।