लोकगायक मेहर सिंह फौजी - Folk Singer Mehar Singh Fouji
फौजी मेहर सिंह का जन्म सन 1918 में श्री नन्दराम जाट के घर गॉव बरौना जिला रोहतक में हुआ | गाने बजाने का चाव इन्हे बचपन से था | मेहर सिंह की आवाज अत्यंत मधुर एवं सुरीली थी | यह उपहार उनके पास प्रकृतिजन्य था | उस समय समाज में गाना बजाना अच्छा नहीं माना जाता था | प्रतिष्ठित परिवार गायन के कार्य को हेय एवं त्याज्य समझते थे, पर बालक मेहर सिंह तो इस कला के कायल हो गए थे | घर वालों से छुप-छुप कर भजनियों का संगीत सुंनना और पंडित लख्मी चन्द के सांग देखना इनका शौक बन गया था| इस बात का उल्लेख इनकी एनेक रागनियों में दर्ज है | एक रागनी में इन्होंने कहा है -
लिखे पढ़े बिन ज्ञान नहीं मनै छन्द का बेरा न सै |
कहै मेहर सिंह गावण का मनै बालक पण तै चा सै ||
इनकी मीठी आवाज होने के कारण पंडित लखमीचन्द ने इन्हे अपना शिष्य स्वीकार किया और मेहर सिंह को इनका शिष्य होने का गर्व था |
देशभक्ति के जज्बे से अभिभूत होकर आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल होने वाले सैनिकों में से मेहर सिंह भी एक थे | सुभाष चंद्र बॉस इनकी गायकी के कारण इनके काफी निकट माने जाते थे | मेहरसिंह ने सुभाषचंद्र बॉस के जर्मनी में हुए भव्य स्वागत को एक रागनी में इस प्रकार प्रस्तुत किया है -
घडी न बीती न पल गुजरे उतरया जहाज शिखर तै |
बरसण लागे फूल बॉस पै हाथ मिले हिटलर तै ||
मेहर सिंह हरयाणवी गायकी के एक सशक्त स्तम्भ थे | अपने पिता को दिए गए वचन को निभाने के लिए इन्होने सांग मंच पर कभी नहीं गाया | यह लोक कलाकार अपना संगीत सुनाने के लिए 15 मार्च 1945 को स्वर्गलोक में चला गया और अपनी रचनाएँ अपनी स्मृति के रूप में हमें दे गया - चन्द्रकिरण, हरिश्चंद्र, सत्यवान-सावित्री, चापसिंह, शाही लकड़हारा, अजीतसिंह-राजबाला, सेठ ताराचन्द, सरवर-नीर, अंजना-पवन, सुभाषचन्द्र बॉस तथा सैंकड़ों अन्य भजन और रागनियां |