कैथल जिला अंबाला मंडल का हिस्सा है यह जिला 1 नवंबर 1989 को कुरुक्षेत्र जिले को काटकर बनाया गया था इसमें कैथल तथा गुहला नामक दो तहसीलें हैं तथा कैथल, पुंडरी, चिका व कलायत कस्बे हैं | इससे पूर्व यह करनाल जिले और फिर कुरुक्षेत्र जिले का उपमंडल भी रहा राज्य के गठन के समय कैथल एक तहसील थी| यह तहसील भी जिला करनाल के अंतर्गत थी वर्ष 1973 में जब कुरुक्षेत्र जिले को अलग जिले का दर्जा दिया गया था तो कैथल क्षेत्र कुरुक्षेत्र में आ गया था कैथल का नाम
यजुर्वेद कथा सरिता के रचयिता कपिल ऋषि के नाम पर भी पड़ा हो सकता है कैथल शब्द का उल्लेख प्राचीन इतिहास में मिलता है कैथल कैथल गांव में फल्गु का मेला लगता है जय महा में वास्तव में हल्की वन इस जनती नदी पितृपक्ष और सोमवती अमावस्या के एक तरफ होने पर बनता है पित्र पक्ष की अमावस्या सोमवती बन जाए या दूसरे शब्दों में अश्विन मास की अमावस्या के दिन सोमवार आ जाए तब फल्गु नदी में स्नान करने का महत्व अतिशय माना गया है गुहला चीका में बाबा मीरा नवबहार की मजार पर प्रतिवर्ष मेला आयोजित होता है कैथल करनाल मार्ग पर स्थित मुंदड़ी गांव में लव कुश महातीर्थ के कारण भी कैथल की अलग पहचान है कैथल संभवत कपीस स्थल का वर्तमान नाम है यह बहुत पुराना कस्बा है सन 1398 में कैथल के जाटों ने तैमूर लंग का जबरदस्त विरोध किया था उस समय यह परगना वजूद में था मध्यकाल में मंडार मंडार राजपूत मोहन सिंह इसका जमीदार था अकबर के शासन काल से पहले ही यहां से निर्मित एक किला मौजूद था इसके उसके शासन के समय पर गन्ने का क्षेत्रफल 918025 बिगे यानी 573766 एकड़ था जिसे 265965 रुपे सरकारी खजाने में प्राप्त होते थे तथा 7728 रूपए धर्मार्थ कार्यों में दिए जाते थे 200 गुण सवारों समेत 32 सैनिकों की परगने पर पलटी थी सिख गुरु रामदास भी यहां पधारे थे 18 वीं सदी के छठे दशक में जब वक्त और नियम मत खाएं इसके जमीदार थे तो विरार वंशी जाट सिख देसू सिंह ने जाटों की मदद से यह जागीर से छीन ली और इसे रियासत बना लिया देसू सिंह नेशन 1762 अहमद शाह दुर्रानी के खिलाफ बरनाला में लड़ाई लड़ी उसने पटियाला राज्य के विरोधियों की सहायता की फल स्वरुप में पटियाला की सेना ने कैथल पर आक्रमण कर दिया परंतु मध्यस्थों ने युद्ध डलवा दिया 1781 में देसु सिंह की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र बेल सिंह और उसके बाद छोटा पुत्र भाई लाल सिंह मुखिया बना लॉर्ड लेक