महाभारत काल से जुड़े पराक्रमी योद्धा कुंती पुत्र दानवीर कर्ण के नाम से राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर एक पर दिल्ली और चंडीगढ़ के बीच समान दूरी पर बसा करनाल शहर ऐतिहासिक पौराणिक धार्मिक तथा विकासात्मक दृष्टि से अपना अहम स्थान रखता है। पुराणों के अनुसार करनाल का प्राचीन नाम कर्णालय हुआ करता था जो कालांतर से करनाल कहलाया। अवधारणा है कि करनाल नगर में आधुनिक कर्ण ताल के स्थान पर राजा कर्ण प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात सवा मन सोना दान करते थे। जन श्रुति के अनुसार महाभारत युद्ध के समय महारथी कर्ण
यहां स्थित अपने किले के उत्तरी द्वार से लड़ने के लिए निकलते थे। अब नगर न्यास द्वारा यहां पर कर्ण ताल के नाम से आकर्षक पार्क का निर्माण करवाया गया है तथा पालिका चौक के समीप भगवान कृष्ण और दानवीर कर्ण की याद में मनमोहक प्रतिमाओं सहित घंटा घर बना हुआ है जो आज भी करनाल नगरी के संस्थापक दानवीर की स्मृति को सजीव रखता है।दानवीर कर्ण के अंग देश की राजधानी करनाल में वर्तमान में करनाल 5000 से अधिक पुराना इतिहास वक्त की रेत पर लिखे हुए है। एक किंवदंती के अनुसार जहां पर वर्तमान में पुराना करनाल बसा हुआ है। वहीं पर महाराजा कर्ण का एक किला हुआ करता था जिस के द्वार हस्तिनापुर तथा इंद्रप्रस्थ, पश्चिमी द्वार कर्ण ताल, पूर्वी द्वार यमुना तट तथा उत्तरी द्वार कुरुक्षेत्र की ओर खुलता था। आज भी पुराने करनाल में दयालपुरा गेट, कलंदरी गेट, जाटो गेट, सुभाष गेट, जुंडला गेट इत्यादि अपभ्रष्ट स्वरूपों में विद्यमान है। पांडवों के साथ महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से लड़ाई के समय दानवीर कर्ण की सेना का पड़ाव भी इसी क्षेत्र में हुआ करता था।
करनाल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगर है। मध्यकाल में यहां से लगभग 15 किलोमीटर दूर तराइन के स्थान पर लड़े गए युद्ध के परिणाम स्वरुप भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा। कहा जाता है कि मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाणों के कारनामे सुन कर युद्ध में उसे हराने की नियत से प्रथम बार बठिंडा से होते हुए चौहान को युद्ध के लिए ललकारा, लेकिन मात्र 7 दिन की लड़ाई के बाद मोहम्मद गोरी पीठ दिखाकर युद्ध से भाग निकला। पृथ्वीराज चौहान अपने चचेरे भाई गोपाल के साथ युद्ध में यदि चाहता तो वह गोरी व उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को बंदी बना सकता था लेकिन भारतीय संस्कृति के प्रतिमानो एवं सामाजिक मूल्यों की रक्षा करते हुए युद्ध में पीठ दिखा कर भाग रहे दुश्मन पर वार करना उचित नहीं समझा।
अकबर के शासनकाल में करनाल दिल्ली सरकार के अधीन एक परगना था। जिसके लिए 50 घुड़सवारों समेत 850 सैनिकों का दल निर्धारित था। इस परगने में कुल 337778 एकड़ रकबा था जिससे 141956 रुपए भू राजस्व और ₹5200 धर्मार्थ प्राप्त होता था। संजौली नामक नाला इस कस्बे के पास से बहता था। सन 1739 में नादिर शाह की मोहम्मद शाह के खिलाफ जीत के बाद यह शहर सुर्खियों में आया। जींद के राजा ने सन 1763 में इस शहर को अपने कब्जे में किया और सन 1797 ईस्वी को जॉर्ज थॉमस ने इस पर अपना अधिकार जमा लिया। अंग्रेजों ने यहां अपनी छावनी भी बनाई लेकिन 1841 ईस्वी में मलेरिया फैलने से इस शहर को छोड़ कर चले गए।
जिला करनाल की सीमाएं पानीपत, कैथल तथा कुरुक्षेत्र जिले की सीमाओं से लगती हैं। पूर्व की तरफ उत्तर प्रदेश की सीमा लगती है इसके साथ-साथ यमुना नदी निकलती है। करनाल में 6 ब्लॉक करनाल, इंद्री, नीलोखेड़ी, निसिंग, घरौंडा तथा असंध है। भौगोलिक दृष्टि से यहां की जमीन बहुत उपजाऊ है गेहूं, धान, दलहन, तिलहन, फल फूल, तथा गन्ना के उत्पादन में जिला करनाल का ने केवल हरियाणा व भारतवर्ष बल्कि विदेशों में भी अपना रुतबा है। धान का कटोरा कहे जाने वाले करनाल जिले के तरावड़ी क्षेत्र में उत्पादित उम्दा किस्म का चावल प्रचुर मात्रा में निर्यात किया जाता है। जिले में दो उप मंडल, 5 तहसील तथा 3 उप तहसीलें हैं। करनाल जिले में 434 गांव तथा 380 पंचायतें हैं।
करनाल के मुख्य पर्यटक स्थल हैं कलंदर शाह का मक़बरा, देवी मंदिर, चर्च टावर, पुराना किला, मीरा साहिब का मकबरा, गुरुद्वारा मंजी साहिब, दरगाह नूरी, कर्ण ताल, सीता माई मंदिर, अंजंथली आदि।
विश्व के मानचित्र पर करनाल को धान का कटोरा कहा जाता है करनाल में अनेक बड़े व मध्यम उद्योग हैं जिनमें लिबर्टी शू लिमिटेड, लिबर्टी फुटवियर, लिबर्टी इंटरप्राइजेज, चमनलाल सेतिया एक्सपोर्ट आदि प्रसिद्ध है। करनाल में जूते, चमड़े से बनी चीजें, चावल, दूध से बनी वस्तुएं, रसोई गैस, चिनी, फूल और सॉल्वेंट ऑयल का उद्योग प्रचुर रूप से है। लघु उद्योगों में चमड़ा उद्योग, कृषि यंत्र व निर्यात का कार्य है। सैनिक स्कूल कुंजपुरा भी जिला करनाल में स्थित है इसे सन् 1961 में स्थापित किया गया था। इस स्कूल में लड़कों को एनडीए में दाखिले के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां स्थित राजकीय पॉलिटेक्निक संस्थान, राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान, केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, सुगरकेन बिल्डिंग इंस्टीट्यूट, स्माल इंडस्ट्रीज सर्विस इंस्टीट्यूट तथा गेहूं शोध निदेशालय ने करनाल को नई पहचान दी है।