श्री किशनचन्द शर्मा लोक-गायक व भजनी - Folk singers and hymns Kishanchand Sharma

किशनचन्द शर्मा - किशनचन्द शर्मा का जन्म गॉव खुंगाई, जिला झज्जर में सन 1941 ईस्वी में मास्टर श्री हरिराम जी के घर हुआ , जो सरकारी स्कूल में एक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे | गॉव  में एक हरिराम जी ही ऐसे व्यक्ति थे जो पढ़े-लिखे थे तथा उर्दू व संस्कृत के विद्धान माने जाते थे | किशनचन्द जी प्राइमरी स्कूल में पढ़ते -पढ़ते इनकी रूचि भजन, गीत, रागनी आदि गाने में हो गई , हाई स्कूल तक जाते-जाते ये इस कला में रम चुके थे  ऐसी कला को निखारने के लिए इन्होने गॉव कसार के पंडित कुन्दनलाल को अपना गुरु धारण किया | सन 1962 ईस्वी में एक उपदेशक के रूप में लोक सम्पर्क विभाग ने इन्हे अपनी सेवा में रख लिया | इनकी कलम मशीन की तरह चलती थी जो 5  मिनट में एक गीत को जनम देने में सक्षम थी |
उपदेशक व कलाकार के रूप में रहते हुए इन्होने अपनी शैली में 20  सांग लिखे | इनके सांगों में  - नौटंकी, सत्यवान-सावित्री, राजबाला -अजित सिंह , रानी झाँसी, राव तुला राम, किस्मत का खेल, पूरणमल, प्रहलाद भगत, बीरमति-बलराज, गुगापीर, चापसिंह, राजा नल, रूप-बसंत, गोरखनाथ, जवाहरमल, किसान की बेटी इत्यादि प्रमुख है | 
              1965 ईस्वी में सर्वप्रथम इन्होने सुंडू की सगाई  नामक लोक हास्य नाटिका लिखी जो काफी लोकप्रिय रही| जिससे प्रोत्साहित होकर इन्होने एक के बाद एक लगभग 300 नाटक एवं एकांकी लिखे जिनमे ठेठ हरियाणवी संस्कृति के दर्शन होते हैं | नाटक लेखन इन्होने कभी अश्लील भाषा का प्रयोग नहीं किया | 
            गुरु  महिमा बताते हुए इन्होने लिखा है  -
                                                         गुरु बिन ज्ञान नहीं , रह जीवन में अंधकार |     
                                                         गुरु ही हमारे , कष्ट निवारे, नैया है मजधार || 
           इन्होने आकाशवाणी के रोहतक केंद्र से के रूपक प्रसारित किये जिनमे तीज पर्व पर लिखा और प्रसारित किया इनका ये रूपक खूब पसंद किया गया | पंडित किशनचन्द ने कारगिल युद्ध के समय जो संगीत नाटिका तैयार की उसकी मार्मिकता की वजह से लोगो की आँखों में आँशु भर आते थे | किशनचन्द जी का  हृदयगति रुक जाने से 14 जनवरी 2007 को अचानक देहांत हो गया