पण्डित ताराचन्द 'वैदिक तोप' लोक गायक - Folk Singer Pandit Tarachand "Vaidik Top"

पण्डित ताराचन्द 'वैदिक तोप' लोक गायक - Folk Singer Pandit Tarachand "Vaidik Top"
पण्डित  ताराचन्द 'वैदिक तोप ' अहीरवाल के सुप्रशिद्ध लोक-गायक है | उनका जन्म महेन्द्रगढ़ जिले के कोथल खुर्द नामक गॉव में सन 1923 को हुआ | उन्होंने अपने गॉव कोथल को कविस्थल कहा है | अपना परिचय देते हुए ताराचन्द जी कहते है - 
                                      पूर्वी पंजाब प्रान्त जिला महेन्द्रगढ़ 
                                      पत्रालय खास बात कविस्थल सुग्राम है | 
                                      ब्राह्मण कुल उत्पन्न मुखिया घराने में 
                                      कवी ताराचन्द वैदिक तोप उपनाम है || 

    पंडित ताराचन्द का विवाह 18 वर्ष की आयु में नारनौल के निकटवर्ती गॉव बिगोपुर की गिन्दोडी देवी के साथ हुआ | इनके कोई सन्तान उत्पन्न नहीं हुई | कुछ वरह बाद उन्होंने छोटी बहन पवित्र देवी के पुत्र सत्यदेव को गोद ले लिया | पंडित ताराचंद बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी रहे है | उन्होंने अध्यापक और लोक-गायक के रूप में विशेष ख्याति प्राप्त की | आर्य भजनोपदेशक के रूप में आर्य समाज में इनका विशेष स्थान है | इन्होने 1957 में आर्य समाज के नेतृत्व में हिंदी के लिए सत्याग्रह किया | इस आंदोलन के कारण वे तीन महीने तक नारनौल की न्यायिक हवालात में बन्द रहे | सन 1967 में गोरक्षा आंदोलन के दौरान ये सत्याग्रही के रूप में दो बार जत्था लेकर गए और दोनों बार एक-एक महीने की सजा काटी | 
    पण्डित ताराचन्द मूलतः भजनोपदेशक एवं लोक-गायक है | इनके भजनों और गीतों की लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशित हुईं हैं | यथा - आर्यगीत बतीसी, सुन्दर भजनावली, सुन्दर गीतांजलि, ताराचन्द की झलक, वैदिक सिद्धान्त, सत्य की विजय, वैदिक दुंदुभि, हमारी सभ्यता, भजन आर्य ज्योति, चेतावनी, आगे बढ़ो, ताराचन्द भजनावली, भजन वीरगाथा, बात की बात, वैदिक भजनावली, तूफान लहर, स्त्री गीत संग्रह, ताराचन्द की तराजू, आर्य ज्योति आदि | 
   पण्डित ताराचन्द मूलतः समाज सुधारक रहे है | इनके गीतों व भजनों की प्रत्येक पंक्ति में समाज-सुधार का स्वर गूँजता दिखाई देता है | नमूने के रूप में एक पंक्ति द्रष्टव्य है -
                                                   एक ईश्वर को तज करके यहाँ देवता तेतीस करोड़ पूजे | 
                                                   देवी भुईयां सेढ शीतला देखे ठौर ही ठौर पूजै ||